एक श्रद्धांजलि - प्रो. संपथ अयंगर


कुद्रेमुख, यह कर्नाटक के चिकमगलूरु जिले में सहयांद्री रेज में एक पिक(चोटी) है जो मेनेटाइट अयस्‍क का बहुत समृद्ध निक्षेप है जीसकी सबसे पहले एक प्रसिद्ध भूविज्ञानी श्री पी सम्‍पत अय्यंगर ने खोज की थी।

अयस्क निक्षेपों के परिष्करण का विचार पहले तब प्रस्तावित किया गया जब जापान की अनेक कंपनियों ने भारत सरकार के उपक्रम राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) के साथ ऐसी परियोजना में अपनी रुचि दिखाई ।  प्रायोगिक अध्ययनों से यह सुझाया गया कि 38% अयस्क के साथ सतह अयस्क को उपलब्ध नई प्रौद्योगिकियों के साथ 67% अयस्क सांद्र से समृद्ध किया जा सकता है । इस सांद्र का परिवहन, कुद्रेमुख के पश्चिम में 110 कि.मी. की दूरी पर अरब सागर के तट पर मंगलूर तक किया जा सकता है । परंतु साठ के दशक के उत्तरार्ध में वैश्विक इस्पात उद्योग अवनति की ओर था । जापानी पीछे हट गए । यह रुचि 1970 के प्रारंभ में दोबारा तब आयी जब ईरान ने अपने महत्वाकांक्षी देशीय इस्पात उद्योग के लिये अपनी योजनाएँ बनाईं तथा वह लौह-अयस्क के विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता की प्रतीक्षा में था । कुद्रेमुख उन के लिये आदर्श लगा, क्योंकि यहाँ पर्याप्त अयस्क था तथा मात्र समुद्र के उस पार था, तो एक करार बना लिया गया ।
इस प्रकार इस्‍पात और खान मंत्रालय के तहत 2 अप्रैल 1976 को ’कुद्रमुख लौह अयस्‍क कंपनी लिमिटेड’ का गठन हुआ। ईरान में राजनीतिक उथल-पुथल के परीणामस्‍वरूप ईरानी सरकार का निष्‍कासन हुआ जिसने परियोजना को खतरे मं डाल दिया। इसलिए सरकार ने परियोजना के पूरा होने के लिए पहल की। अगस्‍त 1980 में 7.5 मिलियन टन वार्षिक क्षमता परियोजना 110 किलोमीटर की स्‍लरी पाइपलाईन और मंगलूरु में निस्‍पंदन ईकाइयाँ पूरी हो गई थी। चूँकि इरान लौह – अयस्‍क को उठाने में असफल रहा, केआईओसीएल को वैकल्पिक बाज़ार और मंगलूरु में पैलेट प्‍लांट की स्‍थापना के लिए तलाश करनी पड़ी। अप्रैल 1987 को मंगलूरु में पैलेट प्‍लांट ने अपना आपरेशन शुरू किया।

कुद्रेमुख कैप्टिव खानों में मैग्‍नेटाइट लौह अयस्‍क सांद्र (कांसेन्‍ट्रेट) का खनन और लाभार्थ (Beneficiated) का उपयोग तीन दशकों से ज्‍यादा सितंबर 2005 तक पैलेट को तैयार करने के लिए किया गया। क्षेत्र को राष्‍ट्रीय उद्यान घोषित करने के कारण केआईओसीएल ने माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के निर्णय के अनुसार 1 जनवरी 2006 से कुद्रेमुख में अपने खनन कार्यों को रोक दिया।

मंगलूरु संयत्र में पैलेट के उत्‍पादन के लिए कुद्रेमुख खान लौह अयस्‍क का कैप्टिव स्‍त्रोत था। कुद्रेमुख में खनन परिचालन के बंद हाने के बाद, केआईओसीएल, छत्‍तीसगढ राज्‍य में एनएमटीसी के बैलाडिला खानों से हेमेटाईट लौह अयस्‍क खरीद रहा है  ताकि वह अपने पैलेट प्‍लांट को फीड़ दे सके। मंगलूरु के संयंत्रों में हेमेटाइट लौह अयस्‍क को संसाधित करने के लिए इन-हाउस विशेषज्ञता का उपयोग करके प्रक्रिया संशोधन किया गया।

मंगलूरु में संयुक्‍त उद्यम के तहत कीस्‍को के रूप में 2.16 लाख टन पिग अयरन की क्षमता के (ब्‍लास्‍ट फर्नेस युनिट) धमन भट्टी इकाई की स्‍थापना की गई थी जिसे बाद में 1 अप्रैल 2007 को केआईओसीएल के साथ मिला दिया गया। 22 जनवरी 2009 को कुद्रेमुख लौह अयस्‍क कंपनी लिमिटेड ने अपना नाम ‘केआईओसीएल लिमिटेड’ में बदला।

कुद्रेमुख लौह अयस्‍क परियोजना की मुख्‍य उपलब्धियाँ है : -

  • भारत में निम्‍न ग्रेड लौह अयस्‍क (35% एफई) के वाणिज्यिक अन्‍वेषण के लिए यह पहली खान थी।
  • पहला पूरी तरह से एकीकृत संचालन जिसमें पूरे संचालन, खानों में अयस्‍क के उत्‍पादन से बंदरगाह पर सांद्र(कान्‍सेन्‍ट्रेट) के लदान (शिपमेंट) शामिल है।
  • 7.5 मेट्रिक टन मेग्‍नेटाइट सांद्र (कांसेन्‍ट्रेट) को स्‍लरी के रूप में पश्चिमी घाट के 67 कि.मी की ढलान की दूरी तक सालाना आगे बढाने वाले परिवहन की एक नव/उत्‍तम प्रणाली।

मंगलूरु में 3.5 एमटीपीए क्षमता का पैलेट (गोली) संयंत्र।